लगातार घट रही है पुष्कर पशु मेले में उठो की संख्या
लगातार घट रही है पुष्कर पशु मेले में उठो की संख्या
अंतर्राष्ट्रीय पुष्कर पशु मेला रद्द होने से एमबीसी समाज में रोष, प्रशासन को दी 3 दिन की मोहलत, लगातार घट रही उठो की संख्या से ऊंटों पर गहराया अस्तित्व का संकट
रेतीले धोरों की रंग बिरंगी संस्कृति का परिचायक पुष्कर पशु मेला देश ही नहीं विदेश तक आकर्षण का मुख्य केंद्र है। पुष्कर पशु मेला पर्यटन के साथ-साथ पशुपालक और स्थानीय व्यवसायियों के लिए आय का मुख्य साधन सालों से बना हुआ है। गायों में लम्पी और घोड़ों में ग्लैण्डर रोग के चलते इस वर्ष पुष्कर पशु मेले को रद्द कर दिया गया है। जिससे पशु प्रेमियों और पालको में खासा नाराजगी देखी जा रही है । इन सबके बीच पशु मेलो की शान कहे जाने वाले रेगिस्तान के जहाज ऊंट अब मेलों में अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ने को मजबूर है। एक तरफ जहां सुविधाओं के तमाम सरकारी दावे किए जाते हैं तो वहीं दूसरी ओर मौजूदा हालात और एक दशक के सरकारी आंकड़े तमाम दावों को जमीन दिखा रहे हैं । पशु मेले का आयोजन नहीं होने के चलते एक तरफ जहां पशु प्रेमी निराश हैं। तो वही इसके व्यवसाय से जुड़े समाज में रोष व्याप्त है।
लगातार घट रही है पुष्कर पशु मेले में उठो की संख्या
यह पहला वाक्य नहीं है जब प्रशासन ने पुष्कर मेला रद्द किया है। इससे पूर्व वर्ष 2020 में कोरोना वायरस से बचाव के लिए मेले के आयोजन को रद्द कर दिया गया था । जिसके बाद सन 2021 के आयोजन की अनुमति तत्कालीन शासन सचिव डॉ आरुषि मलिक ने शर्तों के साथ जिला कलेक्टर को दी थी। पुष्कर मेलों के आंकड़ों पर नजर डाली जाए तो सन 2001 में 15 हजार 460 उठो की आवक हुई । तो वही 2019 में मात्र 3 हजार 298 उठो की आवक दर्ज की गई । 2020 में आयोजन रद्द होने के बात शर्तों के साथ आयोजित हुए 2021 में ऊंटों की संख्या मात्र 2 हजार 340 ही रह गई। लगातार घट रहे आंकड़ों से यह साफ हो जाता है कि विकास की दौड़ में रेगिस्तान का जहाज ऊंट समय के साथ अपनी रफ्तार होता नजर आ रहा है। पुष्कर मेले जैसे बड़े आयोजन के रद्द होने से अब राज्य पशु ऊंट पर संकट मंडराने लगा है। अगर यही हाल रहे तो आने वाले कुछ वर्षों में मेले से उठ गायब हो जाएंगे।
उठ पलको को समय पर नहीं मिली सूचना, मुनादी के बावजूद पहुंचे 300 से अधिक उठ
बदलते वैश्विक परिपेक्ष चुनौतियों के साथ कई पीढ़ियों से उठ पालन के व्यवसाय से अपनी आजीविका चलाने वाले ऊंट पालक के सामने अब रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो गया है । राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले से पैदल अपने ऊंटों का काफिला लेकर पुष्कर पहुंचे पशुपालक राजन बताते हैं कि लाडनूं, डीडवाना, सांडपुरा के मेलों में इस वर्ष किसी तरह की पाबंदी नहीं थी। और ना ही पुष्कर पशु मेले के आयोजन को रद्द करने की सूचना उन तक पहुंची। ऐसे में अखबार और मोबाइल की डिजिटल दुनिया से दूर रहने वाले पशु पालक बड़ी उम्मीदों के साथ इस बड़े पुष्कर पशु मेले में शामिल होने आए हैं। राजन ने नाराजगी जाहिर करते हुए बताया कि यदि इस वर्ष भी पुष्कर मेला आयोजित नहीं होता है तो वह कभी भी अब पुष्कर नहीं आएंगे । वही गंगानगर से साल भर की रोजी की आस लगाकर पुष्कर पहुंचे पशुपालक ओमप्रकाश बताते हैं कि पुष्कर पशु मेला ऊंट पालकों के लिए साल भर का रोजगार प्रदान करता है। ऐसे में सरकार को ऊंट पालकों की दयनीय स्थिति को देखते हुए ऊंटों के क्रय विक्रय से रोक हटाने चाहिए। साथ ही समय पर सूचना नहीं मिलने से पुष्कर पहुंचे ऊंट पालको को पानी बिजली जैसी सुविधाएं उपलब्ध करनी चाहिए। यदि ऊंट पालकों को प्रशासन पुष्कर से खदेड़ता है तो यह न्याय उचित नहीं होगा।
ऊंट प्रेमियों में मेले के आयोजन को रद्द करने, और लगातार घट रही उठो की संख्या से निराशा का माहौल
राजस्थान के विभिन्न पशु मेलों में ऊंट सज्जा का 11 बार प्रथम पुरस्कार और एक बार लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड जीत चुके उठ श्रृंगारक और संस्कृति प्रचारक अशोक तक बताते हैं कि 103 साल पहले अंग्रेजों के जमाने में पुष्कर पशु मेले के महत्व को समझते हुए अजमेर मेवाड़ के तत्कालीन डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट ले.कर्नल ग्रेस बी.ए पेटर्सन ने मेले के आयोजन से कई दिनों पूर्व इश्तिहार छपवा कर मुनादी करते थे। तब का ऐतिहासिक दस्तावेज आज भी उनके पास सुरक्षित पड़ा है। जिसके चलते मेलों में पशुओं की संख्या बढ़ती थी । टाक का कहना है कि पुष्कर पशु मेले के रद्द होने से पशुपालकों पर गहरा नकारात्मक असर पड़ेगा । उठ पुष्कर मेले की पहचान है। जिन्हें देखने देश और दुनिया से हजारों पर्यटक पुष्कर पहुंचते हैं। ऐसे में पर्यटको के हाथ भी निराशा ही लगेगी । सरकार को चाहिए कि पुष्कर पशु मेले में आय इन ऊंट पालकों के लिए सुविधाएं उपलब्ध कराएं ।
पशु मेला को रद्द करने के निर्णय के खिलाफ उतरा एमबीसी समाज,प्रशासन को दी 3 दिन की मोहलत
अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त पुष्कर पशु मेले को पशुओं में चल रही बीमारियों के चलते रद्द कर दिया गया है। जिसको लेकर एमबीसी समाज में रोष व्याप्त हो गया है। अति पिछड़ा वर्ग संरक्षण परिषद के संयोजक और पूर्व न्यायाधीश किशन गुर्जर ने उपखंड अधिकारी सुखाराम पिंडेल को जिला कलेक्टर अंशदीप के नाम ज्ञापन सौंपा । ज्ञापन के जरिए किशन गुर्जर ने मांग की है कि अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त पुष्कर पशु मेले में प्रतिवर्ष भारी तादाद में पशुओं का क्रय विक्रय होता है। जिसमें गाय, भैंस और गधे, घोड़े इत्यादि सभी पशु की भारी तादाद में आमद होती है । अंतरराष्ट्रीय महत्व के इस पशु मेले में गुजरात, पंजाब, हरियाणा, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश सहित कई भागों से पशु प्रेमी और खरीददार उपस्थित होते हैं । यही नहीं विदेश पर्यटकों का मेले के प्रति विशेष आकर्षण रहता है । इसके बावजूद जिला प्रशासन ने इस वर्ष गायों में चल रही लंबी बीमारी के चलते पशु मेले के आयोजन नहीं करने का निर्णय किया है । जिससे अति पिछड़ा वर्ग के गुर्जर, रायका, रेबारी, बंजारा आदि जातियां सीधे रूप से प्रभावित होती हैं । ग्रामीण परिवेश और जंगल में रहने वाले यह जातियां अखबार और डिजिटल माध्यमों से नहीं जुड़ी हैं। जिसके चलते इन तक मेला रद्द करने की सूचना नहीं पहुंच पाई । जिस कारण से वह सैकड़ो किलोमीटर का रास्ता तय कर पुष्कर पहुंचे हैं । ऐसे में उनको वापस लौटना न्याय उचित नहीं होगा । गुर्जर ने घोड़ों में चल रही ग्लेंडर नामक बीमारी के संबंध में कहा कि यह प्रदेश में भयावह रूप में नहीं है। गुर्जर ने हाल ही में अजमेर में हुए जिला पुलिस प्रशासन द्वारा घुड़दौड़ के आयोजन का हवाला देते हुए कहा कि यदि घोड़ों से इंसानों में कोई बीमारी तो प्रशासन इस तरह का आयोजन नहीं करता ।उन्होंने प्रशासन को चेतावनी देते हुए कहा कि या तो प्रशासन 3 दिन में यह निर्णय वापस ले । यदि पशु मेले की अनुमति नहीं दी गई तो पुष्कर मेले में आने वाले पशुओं को बलपूर्वक निकालने की कोशिश यदि प्रशासन करेगा तो उसका विरोध किया जाएगा। साथ ही समाज द्वारा इस संबंध में आंदोलन किया जाएगा।