अंतरराष्ट्रीय पुष्कर मेले में यूं तो राजस्थान की संस्कृति के विभिन्न रंग देखने को मिल रहे हैं, लेकिन इस बार रेतीले धोरों की कला को भी पहचान अब मिलने लगी है.
जिसका परिणाम है कि देशी-विदेशी पर्यटक इस कला से अभिभूत होकर दृश्यों को कैमरे में कैद कर अपने यादों में सजा रहे हैं. मेला प्रशासन ने इस बार मशहूर सेंड आर्टिस्ट अजय रावत के सहयोग से सेंड आर्ट फेस्टिवल का आयोजन किया है, जिसको देखने पर्यटक मेला ग्राउंड और फेस्टिवल स्थल पर पहुंच रहे हैं.
रेत के महीन कणों से बालू मिट्टी लेती है आकार
राजस्थान की सुनहरी माटी ने यूं तो कई कला और कलाकारों को जन्म दिया है. कला की बात की करे, तो मरुधरा के लोक गीत-संगीत, चित्रकला, भवन निर्माण शैली, आभूषण निर्माण कला, मढ़ना आदि देश ही नहीं सात समुद्र पार विदेशों तक अपनी धमक और गूंज का लोहा मनवा चुके है, लेकिन आज के दौर में रेतीले धोरों की गोद में पोषित हो रही कला इन्हीं धीरों में एक लंबे अरसे से धूल फांक रही थी. राजस्थान की बालू रेत के महीन कणों से भावात्मक चित्रण को साकार रूप देती रेत कला शैली, जिसे पुष्कर के ग्रामीण अंचल में पले-बड़े अजय रावत ने कई वर्षों से बिना किसी सरकारी मदद के जीवित रखने के प्रयासों में जुटे है.
पुष्कर में सैंड आर्ट फेस्टिवल का आयोजन
पुष्कर के निकट ग्राम गनेहड़ा के पास जन्मे अजय रावत बीते 8 वर्षों से रेतीले धोरों की इस कला को अपने संघर्ष और उत्साह की बदौलत जिंदा रखे हुए हैं. विभिन्न त्योहारों, राष्ट्रीय पर्वों और समसामयिक घटनाओं ओर आयोजनों को लेकर अपनी रेत कला शैली के जरिए सकारात्मक संदेश भी देते आए है. गत 6 वर्षों से अजय पुष्कर के अंतराष्ट्रीय पशु मेले में अपने खर्चे से रेत राष्ट्रीय रेत कला उत्सव प्रदर्शनी का आयोजन करते है.
इस वर्ष पुष्कर मेले में 1 नवंबर से 8 नवंबर तक सैंड आर्ट फेस्टिवल का आयोजन किया जा रहा है. इतना ही नहीं देश भर से अन्य रेत कलाकृति के कलाकारों को इस मेले में बुलवाकर इसे राष्ट्रीय स्वरूप देने का प्रयास भी करते आए है, जिससे देशभर से आए पर्यटक को धोरों की संस्कृति का एक नूतन स्वरूप देखने को मिलता है. अजय रावत बताते हैं कि इस वर्ष राष्ट्रीय रेत कला उत्सव में 12 कलाकृतियों का निर्माण किया गया है.
जिनमें देशभर के ऐतिहासिक इमारतों, राष्ट्रीय नायकों के चित्रण के साथ-साथ राजस्थान के पहनावे और लोक संस्कृति को दर्शाया गया है. अजय रावत ने बताया कि इसके पीछे उनका उद्देश्य राजस्थान में नूतन स्वरूप ले रही, इस रेत कला को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिले. साथ ही पुष्कर तीर्थ की छवि के अनुसार आने वाले पर्यटकों का पुष्कर के प्रति लगाव बना रहे.
देशी-विदेशी पर्यटकों को भा रही है बालू रेत की यह कला
पुष्कर कस्बे के मेला ग्राउंड के पास कपालेश्वर तिराहे पर करीब 500 मीटर से ही सैंड आर्ट फेस्टिवल का गुब्बारा पर्यटकों की नजरों में आ जाता है, जिसे देखकर पर्यटक फेस्टिवल स्थल तक पहुंचते हैं. महाराष्ट्र के नागपुर से आए पर्यटक रोहित जामबोलकर और गजानंद बताते हैं कि भारत भ्रमण के दौरान उन्हें बालू मिट्टी पर रेत की ऐसी कला और कहीं देखने को नहीं मिली, जिसे देखकर वे अभिभूत हैं.
अमेरिका के कैलिफोर्निया से पुष्कर मेले में आए रोबट बताते हैं कि वह इंटरनेट पर पुष्कर मेले के संबंध में जानकारियां जुटा रहे थे. इसी दौरान उन्हें सैंड आर्ट प्रदर्शनी के बारे में जानकारी मिली. इस कला के संबंध में उत्सुकता उन्हें पुष्कर मेले तक खींच लाई. रोबट ने अपने साथी पर्यटकों के साथ सैंड आर्ट फेस्टिवल बनी इन कलाकृतियों को निहारा और अजय रावत से इस कला के संबंध में जानकारियां जुटाई. वर्षों से टूरिस्ट गाइड का काम कर रहे उदयपुर के सूर्यवीर शक्तावत बताते हैं कि विदेशी पर्यटकों में पुष्कर मेले के प्रति इतना उत्साह होता है कि वह 2 से 3 साल पूर्व ही अपने यात्राओं की बुकिंग करवा लेते हैं. पुष्कर मेले में सैंड आर्ट मेले को नए आयामों से दे रही है, इसी के चलते इस कला को प्रोत्साहन मिलना चाहिए.
बिना सरकारी मदद के रेत कला संवर्धन में जुटे हैं रावत
इस महंगाई के दौर में जहां रोजमर्रा की जिंदगी बसर करना मुश्किल होता जा रहा है, ऐसे में रेत कला प्रदर्शनी के आयोजन में भी खासा खर्चा आता है. अजय रावत द्वारा विभिन्न सरकारी महकमों के लिए रेत कलाकृतियों के निर्माण और इस कला के प्रचार करने के बावजूद भी सरकारी मदद नहीं मिल पा रहे. रावत ने सरकार से मांग की है कि जिस प्रकार उड़ीसा में सैंड आर्ट फेस्टिवल के आयोजन किए जाते हैं, उसी तर्ज पर राजस्थान सरकार पर्यटन विभाग के जरिए राज्य स्तरीय प्रतियोगिताओं के आयोजन करवाएं, जिससे इस कला के साथ-साथ पर्यटन व्यवसाय को भी बढ़ावा मिलेगा.
रावत ने कहा कि जिस प्रकार इग्नू द्वारा विशेष कोर्स सैंड आर्ट के संबंध में विद्यार्थियों को उपलब्ध करवाया जा रहा है, उसी प्रकार कोटा ओपन यूनिवर्सिटी के जरिए राजस्थान ही नहीं देश भर के विद्यार्थियों और कला प्रेमियों को इस कला से रूबरू करवाया जा सकता है. 6 सालों से राज्य की सरकार और तमाम प्रशासनिक अधिकारियों को समझाने के प्रयास में जुटे अजय रावत के हौसले आज भी बुलंद है. भले रेत कला और कलाकार सरकारी उदासीनता के दंश झेल रहे हैं लेकिन पुष्कर के अंतरराष्ट्रीय मेले में अजय रावत के जूनून इस रेतीले धोरों की कला को अभी भी जीवंत बनाए रखा है. मेले में आयोजित सैंड आर्ट फेस्टिवल में आने वाले पर्यटक रावत को सहयोग राशि के रूप में मदद भी कर रहे हैं.