रहस्यमयी शिव मंदिर जहां ग्रह-नक्षत्रों से घटता और बढ़ता है शिवलिंग
भगवान शिव की जाे सच्चे मन के साथ भक्ती करता हैं उसकी हर मनाेकामना पूरी हाेती हैं। आप सभी ने भगवान शिव के बहुत सारे मंदिर देखें हाेंगे, आज हम आपकाे ऐसे मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं, जहां पर दुनिया का पहला ऐसा शिवलिंग है जो दो भागों में विभाजित है।
इसके एक भाग को शिव तो दूसरे को मां पार्वती का रूप माना जाता है। यहां तक की दो भागों में विभाजित शिवलिंग का अंतर ग्रहों एवं नक्षत्रों के अनुसार घटता-बढ़ता रहता है, ताे आइए इस रहस्यमयी मंदिर के बारे में जानते हैं-
यह मंदिर जिला कांगड़ा के इंदौरा उपमंडल मुख्यालय से 6 किलोमीटर की दूरी पर शिव मंदिर काठगढ़ (Kathgarh Mandir) है। शिवरात्रि पर इस मंदिर में प्रदेश के अलावा पंजाब एवं हरियाणा से भी श्रद्धालु आते हैं। शिवरात्रि के त्योहार पर हर साल यहां तीन दिन मेला लगता है। शिव और शक्ति के अर्द्धनारीश्वर स्वरुप के संगम के दर्शन करने के लिए यहां कई भक्त आते हैं। इसके अलावा सावन के महीने में भी यहां भक्तों की भीड़ देखी जा सकती हैं।
इस मंदिर में विराजमान शिवलिंग दुनिया का पहला ऐसा शिवलिंग है जो दो भागों में विभाजित है। इसके एक भाग को शिव तो दूसरे को मां पार्वती का रूप माना जाता है। बता दें कि मंदिर में स्थापित शिवलिंग अष्टकोणीय है। शिव के रूप में पूजे जाने वाले शिवलिंग की ऊंचाई तो 8 फुट है वहीं माता पार्वती के रूप में पूजे जाने वाले हिस्से की ऊंचाई 6 फुट है। काठगढ़ शिव मंदिर (Kathgarh Mandir) में दो भागों में विभाजित शिवलिंग को अर्द्धनारीश्वर शिवलिंग कहा जाता है।
कहा जाता है कि जैसे माता पार्वती भोलेनाथ के आधे अंग पर विराजती हैं वैसे ही इस शिवलिंग में भी वह विराजमान हैं। यूं तो यह शिवलिंग दो भागों में अलग-अलग रहता है। लेकिन सर्दी के मौसम में यह दोनों करीब आ जाते हैं। यह कैसे होता इस बारे में केवल यही कहा जाता है कि ग्रहों की स्थिति के अनुसार ही शिवलिंग पास और दूर होते हैं।
शिव पुराण में वर्णित कथा के अनुसार ब्रह्मा व विष्णु भगवान के मध्य बड़प्पन को लेकर युद्ध हुआ था। भगवान शिव इस युद्ध को देख रहे थे। दोनों के युद्ध को शांत करने के लिए भगवान शिव महाग्नि तुल्य स्तंभ के रूप में प्रकट हुए। इसी महाग्नि तुल्य स्तंभ को काठगढ़ स्थित महादेव का विराजमान शिवलिंग माना जाता है। ऐतिहासिक मान्यताओं के अनुसार, काठगढ़ महादेव मंदिर का निर्माण सबसे पहले सिकंदर ने करवाया था। इस शिवलिंग से प्रभावित होकर सिकंदर ने टीले पर मंदिर बनाने के लिए यहां की भूमि को समतल करवा कर, यहां मंदिर बनवाया था।