
संसार का उपकार करना ही आर्यों का मुख्य उद्देश्य- डॉ. मोक्षराज*
*वैदिक संस्कृति में सुरक्षित हैं, धरती की रक्षा के उपाय*
हर सम्प्रदाय वाले अपने सम्प्रदाय के लोगों का साथ देते हैं, मज़हब वाले अपने मज़हब के लोगों का ही भला सोचते हैं और सभी जाति व नस्ल के अभिमानी संगठन भी केवल अपनी ही जाति व नस्ल के लोगों को लाभ पहुँचाने की योजना बनाते हैं इसी प्रकार कई देश दूसरे देश को बर्बाद कर अपना विकास करने की नीति तैयार करते हैं, किंतु कोई भी मनुष्यमात्र का भला नहीं सोचता है । कोई भी सम्पूर्ण विश्व के मनुष्यों व प्राणियों की भलाई की योजना नहीं बनाता । केवल महर्षि दयानंद सरस्वती ही ऐसे महामानव हुए हैं जिन्होंने जाति-सम्प्रदाय के स्वार्थ की सीमाओं से परे जाकर संसार के उपकार को ही अपना मुख्य उद्देश्य माना ।
उक्त विचार अमेरिका स्थित भारतीय राजदूतावास वॉशिंगटन डीसी में प्रथम सांस्कृतिक राजनयिक एवं जॉर्जटाउन यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर रहे डॉ. मोक्षराज ने आर्यसमाज अजमेर द्वारा आयोजित साप्ताहिक प्रवचन शृंखला में बतौर मुख्य अतिथि व्यक्त किए । उन्होंने कहा कि मनुष्य ने स्वयं को कई घटकों में बॉंट लिया है । इसी कारण लोगों में आपसी ईर्ष्या-द्वेष व विद्रोह पनप रहा है । उनकी इस मानसिकता के कारण उत्पन्न युद्धविभीषिकाओं से प्राणियों का नाश व धरती का संतुलन भी बिगड़ रहा है ।
डॉ. मोक्षराज ने कहा कि नित्य यज्ञ, ध्यान, योग, बड़ों की सेवा, पशु-पक्षियों व प्रकृति की रक्षा, आश्रम व्यवस्था तथा योग्यतानुसार वर्ण व्यवस्था वैदिक संस्कृति के प्रमुख तत्व हैं। आर्यों की यह महान संस्कृति ही नदी, पर्वत, जंगल व लाखों प्रकार के प्राणियों एवं वनस्पतियों का करोड़ों वर्ष से संरक्षण करती रही है ।
आर्यसमाज अजमेर के प्रधान नवीन मिश्र ने बताया कि साप्ताहिक सत्संग में हवन, ईश्वर भक्ति के भजन, ऋषि महिमा गीत तथा सत्यार्थप्रकाश की कथा सुनाई गई । मंत्री चिरंजीलाल शर्मा ने कार्यक्रम का संचालन किया तथा प्रो. स्वामीनाथ गुप्ता, डॉ राधेश्याम शास्त्री, पं. जागेश्वर निर्मल, डॉ. आराधना आर्या, डॉ. रचना आर्या, संध्या भदोरिया, डॉ. अर्चना आर्य, लालचंद आर्य, रवींद्र आर्य, किशनलाल गहलोत, भागचंद आर्य, मनोज माथुर एवं विवेक आर्य आदि ने सक्रियतापूर्वक भाग लिया ।