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भगवान की वाणी सुनने से कभी नहीं चूकना - उपप्रवर्तिनी डॉ. राजमती जी म.सा. *

 


अजमेर 12 जुलाई मणिपुंज सेवा संस्थान में पावन वर्षावास हेतु विराजमान महाश्रमणी गुरूमाता महासती श्री पुष्पवती जी (माताजी) म.सा. आदि महासती वृंद के शुभ सान्निध्य में जिनवाणी की गंगा प्रवाहित हो रही है और श्रावक-श्राविकाएं जीवन जीने की कला सीख रहे हैं।

धर्म सभा को सम्बोधित करते हुए उपप्रवर्तिनी सदगुरुवर्या डॉ. श्री राजमती जी म.सा. ने फरमाया - अपने जीवन में यदि सुख और शांति के सपने भरने हैं, जिन्दगी को खुशहाल बनाना है, इसांनियत की फुलवारी महकानी है,पापों से छुटकारा पाना है, पुण्य का संग्रह करना है और कर्मों का क्षय करके मोक्ष की राह पानी है तो भगवान की वाणी सुनने से कभी चूकना नहीं।परमात्मा की वाणी हर व्यक्ति के भाग्य में नहीं होती क्योंकि कोई कोई ही भाग्यशाली होता है जिसे अरिहन्त की वाणी सुनने में आत्मिक आनन्द प्राप्त होता है। जो परमात्मा की वाणी सुनकर हृदयंगम करता है उसके जीवन में खुशी, प्रेम और शांति की कृपा सावन के मेघ समान बरसती है।संयमी आत्माओं का पावन सान्निध्य और उनके श्रीमुख से परमात्मा के वचन कभी-कभी ही नसीब हो पाते है। अत: जीवन में कैसे भी काम हो, झंझट हो, समय का बहाना बनाकर परमात्मा की वाणी सुनने से कभी वंचित मत होना क्योंकि आत्मा की पहचान, तत्व की अनुभूति, मुक्ति की राह का ज्ञान सत्संग के बिना संभव नहीं

इससे पूर्व साध्वी डॉ. राजरश्मि जी म.सा. ने फरमाया - राग की आग भी भयंकर होती है। राग की पर्याय इच्छा, कामना, अभिलाषा, स्नेह, ममत्व, मूर्छाआदि अनेक है। राग भाव में मदमस्त व्यक्ति को त्याग की बातें समझ नहीं आती। वह तो येन-केन-प्रकारेण अपनी इच्छाओं की पूर्ति करने में लगा रहता है। इन्द्रिय विषयों में रमणता, भौतिक सुख-साधनों में रमणता, कंचन कामिनी में मुग्धता ये सब अशुभ उपयोग है। राग की छवि शुभ तब होती है जब त्याग-तप, व्रत-पूजा, इन्द्रियों के विषयों के प्रति शुभ रूचि हो जैसे आँख से गुरू दर्शन, गुण दर्शन की इच्छा हो, कान से प्रभु भक्ति के गीत सुनना, परनिन्दा सुनने का त्याग करना, वाणी से भी श्रेष्ठ वचन बोलकर सरस्वती का अनुष्ठान करना। ये सब पुण्यवाणी से जो मिला है उसका सदुपयोग शुभ होना चाहिए, तभी जीवन भव्य एवं सुन्दर बनता है। 

* साध्वी डॉ. राजऋद्धि जी म.सा. ने कहा - कर्म सिद्धान्त का यही चमत्कार है कि जैसा किया है, वैसा पाओगे। जो बोया है, वही काटोगे। जिन्हें आज सुख मिल रहा है, उन्होंने पूर्व भव में निश्चित ही पुण्यों का संचय किया होगा। इसके विपरीत जो दु:ख भोग रहे हैं, उन्होंने दूसरों को पीड़ा दी होगी। सुख-विपाक सूत्र कि माध्यम से कर्म के विज्ञान को समझने का प्रयास करना चाहिए।*

प्रवचन के पश्चात पांच लक्की ड्रॉ निकाले गये एवं तपस्या के प्रत्याख्यान गुरूवर्या श्री के मुखारविन्द से हुए।

संघ अध्यक्ष शिखरचंद सिंगी ने तपस्यार्थियों की अनुमोदना की।