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धर्माराधना भावपूर्वक होनी चाहिए - उपप्रवर्तिनी डॉ. राजमती जी म.सा.
अजमेर 9 जुलाई। मणिपुंज सेवा संस्थान में महाश्रमणी गुरूमाता महासती श्री पुष्पवती जी (माताजी) म.सा. आदि ठाणा-7 की पावन प्रेरणा से नवकार महामंत्र जाप के पाट की स्थापना की गई। श्रावक-श्राविकाओं ने इस मंगलमय अवसर पर सामूहिक जाप किया। इसके साथ ही सदगुरुवर्या श्री की भावना का सम्मान करते हुए आज 12 घण्टे तक शांति-जाप हुआ। श्री शान्ति जिनेश्वर शान्ति करो, सुख-सम्पत्ति आनन्द करो की स्वर लहरियों को गुंजायमान करते हुए सभी प्राणियों के लिए मंगल कामना की गई।
धर्म सभा को सम्बोधित करते हुए उपप्रवर्तिनी सदगुरुवर्या डॉ. श्री राजमती जी म.सा. ने फरमाया -दुर्गति की ओर बढऩे वाली आत्मा को जो रोकता है वह धर्म है। पतन की ओर जाते हुए जीव को स्थिर करने का सामथ्र्य धर्म में है। किसी भी जीव ने आत्मिक उत्थान किया है तो इसी धर्म के बल पर किया है। इसलिए आज करो - कल करो, इस जन्म में करो - अगले जन्म में करो, तिरणा है तो धर्म धारण करना पड़ेगा। आत्मा के स्वभाव में रमण करना पड़ेगा। धर्माराधना भावपूर्वक होनी चाहिए, मन से करनी चाहिए। मन से की गई एक नवकारसी सैकड़ों वर्षों के पापों की निर्जरा करा सकती है। मन की शुद्धि से किया गया तप-जप नरक के बन्ध काट सकता है। प्रभु वर्धमान को भावपूर्वक किया गया नमन भी संसार-सागर से तिरा सकता है।
साध्वी डॉ. राजरश्मि जी म.सा. ने इसी धर्म सभा में फरमाया - देव विषयों में आसक्त हैं, नारक विविध दु:खों से संतप्त हैं, तिर्यंच विवेक रहित है, धर्म साधना के लिए मात्र एक मनुष्य गति बची है। मानव भव पाकर जिनवाणी के अनुरूप मन से धर्माराधना करें। चातुर्मास में दया, संवर, उपवास पौषध यथाशक्ति अवश्य करना चाहिए। संसार में कमल समान निर्लेप रहें। अपने गृहस्थ धर्म का पालन करें लेकिन आत्म हित में उत्कृष्ट मंगलमय धर्म का आचरण करें। शाश्वत सुख पाना है तो कर्म निर्जरा के साधन धर्म की आराधना अवश्य करें।
साध्वी डॉ. राजऋद्धि जी म.सा. ने फरमाया - जैन संस्कृति त्याग प्रधान हैं। स्वेच्छा से भौतिक सुखों का त्याग करने वाले का जीवन वन्दनीय-पूजनीय बन जाता है। पंचपरमेष्ठि में अरिहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय एवं साधु पद पर शोभायमान होने वाले भव्य आत्मायें भौतिक सुख-साधनों एवं राग-द्वेष कषायों का त्याग करने से होते है।
साध्वी श्री राजकीर्ति जी म.सा. ने फरमाया - संसार में आवागमन की भटकन पर अटकन लगाने के लिए कर्म निर्जरा करने का पराक्रम करना होता है। अन्तराय कर्म तोडऩे के लिए तन, मन से भावपूर्वक तप करना होगा और सत्वेषु मैत्री का भाव जागृत करना होगा। धार्मिक समन्वय का नजारा धर्मसभा में दिखाई दिया जब महामंडलेश्वर साध्वी महिमामयी अनादि सरस्वती जी का पदार्पण हुआ। आपने मधुर वाणी से जैन धर्म के अभूतपूर्व सामाजिक और नैतिक उत्थान हेतु योगदान पर प्रकाश डाला।
आज गुरूवर्या पुष्प-राज ग्रुप की लघु साध्वी श्री राजकीर्ति जी म.सा. के 23 वें जन्म-दिवस पर उनके मंगलमय संयम जीवन के लिए शुभ कामना दी गई। इस अवसर पर 23 लक्की ड्रा निकाले गये। धर्म सभा में नागौर, ब्यावर, भीलवाड़ा आदि क्षेत्रों से गुरूभक्तों का आगमन रहा।