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सत्संग एवं स्वाध्याय में तत्पर रहें - उपप्रवर्तिनी डॉ. राजमती जी म. सा.


 मणिपुंज सेवा संस्थान में चातुर्मास हेतु विराजित शताब्दी गौरवान्विता महाश्रमणी गुरूमाता महासती श्री पुष्पवती जी (माताजी) म.सा. आदि ठाणा-7 के पावन सान्निध्य में चातुर्मासिक गतिविधियों का शुभारंभ हुआ। श्रावक-श्राविकाओं ने श्रद्धा जागरण हेतु प्रात: प्रार्थना एवं मंगलिक का लाभ लिया।
  धर्मसभा को सम्बोधित करते हुए उपप्रवर्तिनी सदगुरुवर्या डॉ. श्री राजमती जी म.सा. ने फरमाया - चातुर्मास का पावन काल आध्यात्मिक आराधना और आत्म-विकास के लिए सर्वोत्तम होता है। जो भी समय, जितना भी समय मिले आत्मा साधना के पुनीत कार्य में लगाना चाहिए। लगभग सभी परम्पराओं, सम्प्रदायों, पंथों के साधु-सन्त-संन्यासी वर्षावास के दौरान जन-जन के आत्मलाभ हेतु प्रवचनों एवं धार्मिक अनुष्ठानों का आयोजन करते हैं। विशेष रूप से जैन साधु-साध्वी भगवन्त आत्म कल्याण, धर्म जागृति एवं ज्ञान, दर्शन एवं चारित्र की आराधना के लिए, श्रावक-श्राविकाओं को जिनवाणी रूप धर्म-सन्देश देने के लिए, जीवों की अनचाही हिंसा से बचने के लिए चातुर्मास करते हैं। चातुर्मास की पवित्रता का निर्वहन करने के लिए सत्संग एवं स्वाध्याय में तत्पर रहना चाहिए।
साध्वी डॉ. राजरश्मि जी म.सा. ने फरमाया - जैसे समय बीतने पर वृक्ष का सूखा हुआ पीला पत्ता गिर जाता है, उसी प्रकार मनुष्य का जीवन भी क्षण भंगुर है। समय मात्र का भी प्रमाद न करते हुए श्रेष्ठ धर्म का श्रवण करना चाहिए। ज्ञान, दर्शन से युक्त हमारी आत्मा ही शाश्वत है। देव दुर्लभ मनुष्य भव को पाकर नाश्वान् चीजों के प्रति आसक्ति और उन्हें पाने की लालसा आत्मा के लिए हितकारी नहीं। धर्म स्थान की शोभा श्रावक-श्राविकाओं द्वारा धर्माराधना से होती है। भगवान् महावीर की वाणी सुनकर राग-द्वेष का छेदन करते हुए सिद्धत्व के लिए पराक्रम करना चाहिए।
साध्वी डॉ. राजऋद्धि जी म.सा. ने ओजस्वी वाणी से उदबोधन देते हुए कहा - राग-द्वेष विजेता, हिंसा, झूंठ, चोरी आदि अठारह पापों से मुक्त 'अरिहंत' हमारे आराध्य देव है। स्वभाव में स्थित परम् वीतरागी प्रभु हमें आवागमन से मुक्त होने का मार्ग बताते हैं। श्वेत वर्ण से अपने आज्ञा चक्र पर ध्यान केन्द्रित करके 'णमो अरिहंताणं' का स्मरण करने से हमारे भीतरी शत्रुओं राग-द्वेष, कषाय आदि का शमन होता है। मन को शान्ति मिलती है एवं कर्म निर्जरा होने से आत्मा शुद्ध होती है।
प्रवचन के पश्चात 5 लक्की ड्रा निकाले गये।
 संघमंत्री कैलाशचंद गैलड़ा ने धर्मप्रेमी श्रावक-श्राविकाओं को जिनवाणी सुनने के लिए आह्वान किया एवं त्याग-तप करने वालों की अनुमोदना की। चातुर्मास में साधर्मी अतिथियों के भोजन व्यवस्था के लाभार्थी श्री प्रकाशचंदजी विकासकुमार जी चौपड़ा परिवार की भी अनुमोदना की एवं अतिथियों तथा बाहर से पधारे श्री संघों ने भी लाभार्थी चौपड़ा परिवार का आभार प्रकट किया।