
नए आपराधिक कानूनों से न्याय प्रणाली में बढ़ा भ्रम: पी. चिदंबरम का अमित शाह पर पलटवार
नई दिल्ली: केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह द्वारा नए आपराधिक कानूनों — भारतीय न्याय संहिता (BNS), भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम (BSA) — को स्वतंत्र भारत का सबसे बड़ा सुधार बताए जाने पर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री पी. चिदंबरम ने तीखा पलटवार किया है। उन्होंने इन कानूनों को लागू करने को "कट एंड पेस्ट एक्सरसाइज" करार दिया और कहा कि इससे न्याय प्रशासन में केवल भ्रम की स्थिति उत्पन्न हुई है।
चिदंबरम ने आरोप लगाया कि सरकार का दावा कि ये कानून स्वतंत्र भारत का सबसे बड़ा सुधार हैं, हकीकत से कोसों दूर है। उन्होंने कहा, "मैंने तीनों विधेयकों की समीक्षा करने वाली संसदीय स्थायी समिति को अपना असहमति पत्र सौंपा था, जिसे बाद में समिति की रिपोर्ट में भी शामिल किया गया। इन कानूनों में भारतीय दंड संहिता (IPC), दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम (IEA) के प्रावधानों को केवल पुनर्लेखित किया गया है — इनमें से 90-95% हिस्से पुराने कानूनों से ही लिए गए हैं।"
अमित शाह का पक्ष
बीते दिन दिल्ली के भारत मंडपम में आयोजित एक कार्यक्रम में अमित शाह ने नए आपराधिक कानूनों के एक वर्ष पूर्ण होने पर कहा कि इनसे न्याय प्रणाली में आमूलचूल परिवर्तन आएगा। उन्होंने कहा कि अब जांच, चार्जशीट और फैसले के लिए 90 दिन की समयसीमा तय की गई है, जिससे "एफआईआर से तुरंत न्याय" की भावना लोगों में मजबूत होगी। साथ ही महिलाओं और बच्चों के खिलाफ अपराधों के लिए अलग अध्याय तथा आतंकवाद और संगठित अपराधों के लिए कठोर दंड का प्रावधान किया गया है।
गृह मंत्री ने यह भी बताया कि इन कानूनों के सफल क्रियान्वयन के लिए 14.80 लाख पुलिसकर्मियों, 42,000 जेल कर्मचारियों और 19,000 न्यायाधीशों को प्रशिक्षण दिया गया है। उन्होंने कहा कि इन कानूनों को तैयार करने से पहले 160 बैठकें आयोजित की गईं और 89 देशों की न्याय प्रणालियों का अध्ययन किया गया।
क्या है बदलाव
नए कानूनों — BNS, BNSS और BSA — ने एक जुलाई 2024 से पुराने कानूनों, यानी भारतीय दंड संहिता (1860), दंड प्रक्रिया संहिता (1973) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम (1872) को पूरी तरह से प्रतिस्थापित कर दिया है। सरकार का दावा है कि ये कानून न्याय प्रक्रिया को अधिक पारदर्शी, समयबद्ध, सुलभ और पीड़ित-केंद्रित बनाएंगे।
हालांकि विपक्ष और कई विशेषज्ञों का मानना है कि इन कानूनों को बिना पर्याप्त विचार-विमर्श और न्यायिक तंत्र को तैयार किए लागू कर देना जल्दबाज़ी है, जिससे व्यावहारिक स्तर पर गंभीर समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं।