News Image

आषाढ़ अमावस्या पर करें पितृ चालीसा का पाठ – पितरों की कृपा से होगा कल्याण

सनातन धर्म में पितृ पक्ष एक विशेष काल है, जब हम अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति और कृपा प्राप्ति के लिए श्राद्ध, तर्पण व पिंडदान करते हैं। यह काल भाद्रपद पूर्णिमा से लेकर आश्विन अमावस्या तक होता है। लेकिन आषाढ़ अमावस्या को भी पितरों को प्रसन्न करने के लिए अत्यंत पुण्यदायक माना गया है।

आषाढ़ अमावस्या 2025 की तिथि

आरंभ – 24 जून 2025, शाम 6:59 बजे

समापन – 25 जून 2025, दोपहर 4:00 बजे

उदयातिथि के अनुसार तिथि25 जून को आषाढ़ अमावस्या मनाई जाएगी

पितरों को प्रसन्न करने के उपाय

इस दिन प्रातः स्नान कर सूर्य देव को अर्घ्य देना, पीपल वृक्ष की पूजा, ज़रूरतमंदों को भोजन और वस्त्र दान, और तर्पण व पिंडदान करना श्रेष्ठ माना गया है।

पितृ दोष निवारण हेतु करें पितृ चालीसा का पाठ

धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, इस दिन श्रद्धा पूर्वक पितृ चालीसा का पाठ करने से न केवल पितृ प्रसन्न होते हैं, बल्कि पितृ दोष का निवारण, कुल की उन्नति, परिवार में सुख-शांति और समृद्धि भी सुनिश्चित होती है।  ॥ श्री पितृ चालीसा ॥

(पितरों की कृपा प्राप्ति हेतु)

।। दोहा ।।
हे पितरेश्वर आपको दे दो आशीर्वाद,
चरण शीश नवा दियो रख दो सिर पर हाथ।
सबसे पहले गणपत पाछे घर का देव मनावा जी।
हे पितरेश्वर दया राखियो, करियो मन की छाया जी।

॥ चालीसा आरंभ ॥

पितरेश्वर करो मार्ग उजागर, चरण रज की मुक्ति सागर।
परम उपकार पितरेश्वर कीन्हा, मनुष्य योणि में जन्म दीन्हा।
मातृ-पितृ देव मन जो भावे, सोई अमित जीवन फल पावे।
जै-जै-जै पितर जी साईं, पितृ ऋण बिन मुक्ति नाहिं।

चारों ओर प्रताप तुम्हारा, संकट में तेरा ही सहारा।
नारायण आधार सृष्टि का, पित्तरजी अंश उसी दृष्टि का।

प्रथम पूजन प्रभु आज्ञा सुनाते, भाग्य द्वार आप ही खुलवाते।
झुंझुनू में दरबार है साजे, सब देवों संग आप विराजे।

प्रसन्न होय मनवांछित फल दीन्हा, कुपित होय बुद्धि हर लीन्हा।
पित्तर महिमा सबसे न्यारी, जिसका गुणगावे नर-नारी।

तीन मण्ड में आप बिराजे, बसु, रुद्र, आदित्य में साजे।
नाथ सकल संपदा तुम्हारी, मैं सेवक समेत सुत-नारी।

छप्पन भोग नहीं हैं भाते, शुद्ध जल से ही तृप्त हो जाते।
तुम्हारे भजन परम हितकारी, छोटे-बड़े सभी अधिकारी।

भानु उदय संग आप पुजावै, पांच अंजुलि जल रिझावै।
ध्वज पताका मंडप में साजे, अखण्ड ज्योति में आप विराजे।

सदियों पुरानी ज्योति तुम्हारी, धन्य हुई जन्म भूमि हमारी।
शहीद हमारे यहाँ पूजाते, मातृभक्ति संदेश सुनाते।

जगत पित्तरो सिद्धांत हमारा, धर्म जाति का नहीं है नारा।
हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई – सब पूजें पित्तर भाई।

हिंदू वंश वृक्ष है हमारा, जान से ज्यादा हमको प्यारा।
गंगा ये मरुप्रदेश की, पितृ तर्पण अनिवार्य परिवेश की।

बंधु छोड़ ना इनके चरणा, इन्हीं की कृपा से मिले प्रभु शरणा।
चौदस को जागरण करवाते, अमावस को हम धोक लगाते।

जात-जडूला सभी मनाते, नान्दीमुख श्राद्ध सभी करवाते।
धन्य जन्मभूमि का वो फूल है, जिसे पितृ मंडल की मिली धूल है।

श्री पित्तर जी भक्त हितकारी, सुन लीजे प्रभु अरज हमारी।
निशिदिन ध्यान धरे जो कोई, ता सम भक्त और नहीं कोई।

तुम अनाथ के नाथ सहाई, दीनन के हो सदा सहाई।
चारिक वेद प्रभु के साखी, तुम भक्तन की लाज राखी।

नाम तुम्हारो लेत जो कोई, ता सम धन्य और नहीं कोई।
जो तुम्हारे नित पाँव पलोटत, नवों सिद्धि चरणा में लोटत।

सिद्धि तुम्हारी सब मंगलकारी, जो तुम पे जावे बलिहारी।
जो तुम्हारे चरणा चित्त लावे, ताकी मुक्ति अवसी हो जावे।

सत्य भजन तुम्हारो जो गावे, सो निश्चय चारों फल पावे।
तुम्हीं देव, कुलदेव हमारे, तुम्हीं गुरुदेव, प्राण से प्यारे।

सत्य आस मन में जो होई, मनवांछित फल पावें सोई।
तुम्हरी महिमा बुद्धि बड़ाई, शेष सहस्त्र मुख सके न गाई।

मैं अतिदीन मलीन दुखारी, करहुं कौन विधि विनय तुम्हारी।
अब पितर जी दया दीन पर कीजै, अपनी भक्ति शक्ति कछु दीजै।

🌺 ॥ आरती और समापन दोहा ॥

जय पितरेश्वर दीन दयाला,
नाम जपे मिटे सब जंजाला।
भक्ति करे जो तेरा साचा,
कबहूँ न जीवन में हो काचा।