
पूज्य पारब्रह्म देव का वार्षिकोत्सव देश, दुनिया मना रही है।
अजमेर स्थित पूज्य पारब्रह्म देव मंदिर में वार्षिकोत्सव धूमधाम से मनाया गया जिसके अंतर्गत सांस्कृतिक कार्यक्रम, जनेऊ, बच्चों के मुंडन, छड़ी साहब की परिक्रमा, भंडारा व पल्लव के साथ वार्षिकोत्सव संपन्न हुआ। सांस्कृतिक सचिव घनश्याम ठारवानी भगत ने बताया कि पूज्य पारब्रह्म देव जो कि सिंधी समाज के लोक देवता हैं जिनका मेला न सिर्फ भारत परंतु विश्व भर में धूमधाम से मनाया जा रहा है। लगभग 342 वर्ष पूर्व पूज्य परब्रह्म देव का जन्म कच्छ प्रांत के मधुसूदन नामक ब्राह्मण के घर में हुआ था उनके माता का नाम मेंघी बाई था। बचपन से ही ब्रह्मलीन रहते थे उनकी आत्मा शुद्ध व पवित्र थी। परमात्मा में लीन रहते थे भक्ति भाव में विभोर रहते थे। विकारों से दूर थे। पिता द्वारा सगाई कराये जाने पर स्वयं अपने ससुराल जाकर अपनी होने वाली ग्रहणी के पांव को छूकर उन्हें बहन मानकर गृहस्थ जीवन में प्रवेश न लेते हुए समाज सेवा व प्रभु भक्ति का मार्ग अपनाया और वहां से हिंगलाज चले गये जहां उन्हें एक त्रिशूल मिला। हिंगलाज जाने के बाद काशीनाथ, केदारनाथ, बद्रीनाथ के दर्शन करके अंत में गिरनार पहुंचे । गुरु के रूप में मेहकण कापड़ी से दीक्षा ली। गुरु भक्ति में लीन हो गये, उपदेश देने शुरू किये गुरु ने देखा कि परब्रह्म का जस उनसे भी ज्यादा हो गया है गुरु का आदेश पाकर वे थर देश की तरफ गए और वहां जन सेवा के कई कार्य किये। गरीबों की सेवा करना उनका प्रमुख उद्देश्य था अपने गांव के खारे पानी को मीठा करके उन्होंने अपने चमत्कार का जलवा दिखाया। रावलपीर नामक संत से उनकी मुलाकात हुई।एक दिन अपने शरीर पर गुड लगाकर पेड़ से चिपक गए सभी कीड़े मकोड़े द्वारा गुड़ के साथ-साथ उनके शरीर को भी खाना शुरू कर दिया परंतु उन्हें कुछ भी फर्क नहीं पड़ा क्योंकि वह प्रभु भक्ति में लीन थे। उनकी जोत वहां से जार साहब नामक स्थान पर प्रकट हुई जिसे देखकर सभी प्रेमियों ने सदा शिव सदाशिव के जयकारे लगाए और वहीं से पारब्रह्म ज्येष्ठ माह की पंचमी तिथि शुक्ल पक्ष को जमीन में समाधि लेकर अंतर ध्यान हो गये। पारब्रह्म देव का वह चमत्कारी त्रिशूल जिसे की छड़ी के रूप में मान्यता प्राप्त है भक्त प्रतीकात्मक रूप में उसकी पूजा करते हैं। अजमेर, सूरत अहमदाबाद, जयपुर, मुंबई दुबई, जबलपुर, हांगकांग आदि सभी देश-विदेश में मेला लगाकर पूजा की जाती है। छड़ी साहब की नगर परिक्रमा कराई जाती है पारब्रह्म के सभी श्रद्धालु सदाशिव सदाशिव का जाप करते हैं और उनकी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।