
महिलाओं को सबसे ज्यादा प्रभावित करने वाला अवसाद: पोस्टपार्टम डिप्रेशन
प्रसव के बाद महिलाओं में होने वाला मानसिक तनाव अब गंभीर रूप लेता जा रहा है। विशेषज्ञों के अनुसार, दुनियाभर में 10 से 20 प्रतिशत महिलाएं पोस्टपार्टम डिप्रेशन (पीपीडी) का शिकार होती हैं। यह एक ऐसा मानसिक विकार है, जिसमें महिला को अत्यधिक उदासी, थकावट, घबराहट और बच्चे से दूरी जैसी परेशानियां होने लगती हैं।
विशेष बात यह है कि विकासशील देशों में यह समस्या ज्यादा देखी गई है। कुछ अध्ययनों में इसकी दर 20% तक दर्ज की गई है। भारत में यह स्थिति और भी चिंताजनक है।
🤱 भारत में क्यों बढ़ रहे हैं पीपीडी के मामले?
भारत में महिलाओं के बीच पोस्टपार्टम डिप्रेशन के मामलों में लगातार इजाफा देखा जा रहा है। इसके पीछे कई कारण हैं, जैसे:
आर्थिक कठिनाइयां
घरेलू हिंसा
वैवाहिक कलह
मानसिक बीमारी का पारिवारिक इतिहास
परिवार और समाज से सहयोग की कमी
विशेषज्ञ मानते हैं कि यह समस्या सामाजिक चुप्पी और जानकारी के अभाव के चलते और भी गंभीर हो जाती है। अधिकांश महिलाएं इसे पहचान ही नहीं पातीं और इलाज में देरी हो जाती है।
⚠️ ऐसे लक्षण दिखें तो हो जाएं सतर्क:
हर समय उदासी और थकावट
बच्चे से दूरी महसूस होना
आत्मग्लानि या खुद को अयोग्य मां समझना
चिड़चिड़ापन, गुस्सा
आत्महत्या के विचार
🩺 इलाज और सहयोग बेहद जरूरी
विशेषज्ञ बताते हैं कि अगर ये लक्षण दो हफ्ते से ज्यादा समय तक बने रहें, तो महिला को डॉक्टर से जरूर दिखाना चाहिए। इलाज में दवाएं, काउंसलिंग और परिवार का भावनात्मक समर्थन मददगार साबित होता है।
सीबीटी (कॉग्निटिव बिहेवियरल थेरपी) और अन्य मनोचिकित्सकीय उपचारों से मरीज को राहत मिल सकती है।
📢 विशेषज्ञों की सलाह:
"यह एक बीमारी है, कमजोरी नहीं। इसलिए शर्म न करें, मदद लें। परिवार और समाज को भी संवेदनशील बनने की जरूरत है।"
— डॉ. प्रिया शर्मा, मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ
👉 निष्कर्ष: पोस्टपार्टम डिप्रेशन कोई साधारण तनाव नहीं, बल्कि गंभीर मानसिक स्वास्थ्य समस्या है। यदि समय रहते इसका उपचार न हो, तो यह मां और बच्चे दोनों के लिए खतरनाक हो सकता है।
(यह रिपोर्ट जागरूकता के उद्देश्य से प्रकाशित की गई है। किसी भी लक्षण की स्थिति में विशेषज्ञ डॉक्टर से परामर्श अवश्य लें।)