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पितृपक्ष में भूलकर भी न करें ये काम, वरना लग सकता है पितृ दोष

 

हिंदू धर्म में पितृपक्ष का विशेष महत्व है। हर साल यह भाद्रपद मास की शुक्ल पूर्णिमा से शुरू होकर आश्विन अमावस्या तक चलता है। लगभग पंद्रह दिनों तक लोग अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान करते हैं। माना जाता है कि इस समय पितरों को याद करने से उनका आशीर्वाद प्राप्त होता है और परिवार में सुख-समृद्धि आती है।

लेकिन शास्त्रों में पितृपक्ष के दौरान कुछ कार्यों को वर्जित बताया गया है। इन नियमों का पालन न करने पर पितरों की नाराज़गी और पितृ दोष का भय माना जाता है।

पितृपक्ष में क्या न करें?

नए कपड़े, जूते या चप्पल न खरीदें – इसे अशुभ माना जाता है।

शादी-ब्याह, सगाई या अन्य मांगलिक आयोजन से बचें – इस अवधि में ऐसे कार्य करना वर्जित है।

तामसिक भोजन से परहेज़ करें – जैसे मांस, मछली, अंडा, प्याज और लहसुन आदि।

सोना-चांदी जैसी बहुमूल्य वस्तुएँ न खरीदें – इसे पितरों की नाराज़गी का कारण माना गया है।

असंयमित आचरण न करें – ब्रह्मचर्य का पालन करें और धार्मिक कार्यों में समय दें।

दूसरों का अपमान न करें – बड़ों का आदर करें और सभी से नम्रता से पेश आएँ।

पितरों को प्रसन्न करने के लिए करें मंत्र जाप

पितृपक्ष में मंत्रोच्चारण का भी विशेष महत्व है। माना जाता है कि इन मंत्रों के जाप से पितर प्रसन्न होते हैं और परिवार पर उनका आशीर्वाद बना रहता है।

🔹 महामृत्युंजय मंत्र

 

ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् । उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ॥

🔹 रुद्र मंत्र

 

ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय च धीमहि तन्नो रुद्र: प्रचोदयात॥

🔹 पितृ मंत्र

 

ॐ पितृगणाय विद्महे जगत धारिणी धीमहि तन्नो पितृ: प्रचोदयात्॥