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गणेश उत्सव के दस दिनों का महत्व और प्रत्येक दिन का भोग

 

गणेश चतुर्थी का पावन पर्व भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी से प्रारंभ होकर अनंत चतुर्दशी तक दस दिनों तक मनाया जाता है। इस अवधि में भगवान गणेश की विधिवत पूजा-अर्चना कर उनसे सुख, शांति और सफलता की कामना की जाती है। महाराष्ट्र सहित पूरे भारत में इस उत्सव का विशेष उल्लास देखने को मिलता है।

इस वर्ष गणेश चतुर्थी 27 अगस्त 2025 को मनाई जाएगी और 6 सितंबर 2025 को अनंत चतुर्दशी के दिन प्रतिमा विसर्जन के साथ उत्सव का समापन होगा। आइए जानते हैं इन दस दिनों का महत्व और हर दिन चढ़ाए जाने वाले भोग के बारे में—

पहला दिन: गणेश चतुर्थी

माता पार्वती को इसी दिन पुत्र स्वरूप श्री गणेश की प्राप्ति हुई थी। इस दिन भक्त गणेश जी की प्रतिमा घर में स्थापित करते हैं और षोडशोपचार विधि से पूजन करते हैं।
भोग: मोदक, लड्डू, पुरणपोली।

दूसरा और तीसरा दिन

इन दिनों प्रतिमा का विधिवत पूजन किया जाता है। गणेश जी को फूल, फल और नैवेद्य अर्पित किए जाते हैं।
भोग: खिचड़ी, गुड़-नारियल से बनी मिठाइयाँ।

चौथा और पाँचवाँ दिन

भक्त गणेश जी के विघ्नहर्ता स्वरूप की कथाएँ सुनते हैं और सामूहिक प्रार्थना करते हैं।
भोग: रवा लड्डू, चना-नारियल के व्यंजन।

छठा दिन (राजन गणपति पूजा)

इस दिन गणपति की विशेष आराधना की जाती है और पारंपरिक भोज का आयोजन होता है।
भोग: थालीपीठ, वड़ा पाव, नारियल की बर्फी, बेसन लड्डू।

सातवां और आठवां दिन

इन दिनों से विसर्जन की तैयारी शुरू होती है। भजन-कीर्तन का आयोजन होता है।
भोग: विभिन्न प्रकार की बर्फी और लड्डू।

नवां दिन (अनंत चतुर्दशी)

यह गणेश उत्सव का सबसे महत्वपूर्ण दिन है। इस दिन शोभायात्रा के साथ गणपति का विसर्जन किया जाता है, जो उनके कैलाश पर्वत लौटने का प्रतीक है।
भोग: मोदक, श्रीखंड, मोतीचूर लड्डू।

दसवां दिन

विसर्जन के बाद भक्त मिलकर भगवान का आभार व्यक्त करते हैं और पारंपरिक भोजन का आनंद लेते हैं।
भोग: पिठला भाकरी, पुरणपोली, वड़े और अन्य मिठाइयाँ।

✨ गणेश उत्सव केवल पूजा का पर्व नहीं, बल्कि आनंद, संस्कृति और एकता का प्रतीक है। हर दिन भगवान गणेश के प्रति श्रद्धा और भक्ति को बढ़ाने का अवसर प्रदान करता है।