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अमेरिकी टैरिफ वॉर से भारत कैसे निकालेगा रास्ता, क्या हैं विकल्प?

 

अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने आर्थिक घाटा कम करने के लिए टैरिफ को एक अहम हथियार बनाया है। उनकी रणनीति अमेरिकी उद्योगपतियों को देश में निवेश करने और घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देने पर केंद्रित है। हालांकि, इन टैरिफ का बोझ अमेरिकी उपभोक्ताओं पर पड़ेगा और उन्हें महंगाई की मार झेलनी होगी। रणनीतिक कारणों से मोबाइल और दवाइयों के सेक्टर को फिलहाल टैरिफ से बाहर रखा गया है, लेकिन टेक्सटाइल जैसे क्षेत्रों में बढ़ती लागत अंततः अमेरिकी उपभोक्ताओं को प्रभावित करेगी।

भारतीय बाजार तक सीमित पहुंच के चलते चीन और अन्य देश भी अमेरिकी बाजार में मुनाफा बढ़ाने की कोशिश कर सकते हैं, जिससे अमेरिका को और नुकसान हो सकता है।

नए बाजारों की ओर रुख ज़रूरी

नियो इकोनॉमिस्ट्स के मुख्य अर्थशास्त्री डॉ. एस.पी. शर्मा के अनुसार, अमेरिकी टैरिफ का असर भारत पर सीमित समय तक रहेगा। खासकर टेक्सटाइल और हैंडीक्राफ्ट सेक्टर पर इसका अल्पकालिक दबाव देखने को मिल सकता है, लेकिन भारत छह महीने के भीतर इससे उबरने की स्थिति में होगा।

विशेषज्ञों का मानना है कि भारत को लैटिन अमेरिकी देशों, यूरोप और मध्य पूर्व के बाजारों में अपना निर्यात बढ़ाने पर ध्यान देना चाहिए। जैसे ब्रिटेन के साथ द्विपक्षीय संबंध मजबूत किए गए हैं, उसी तरह यूरोपीय और एशियाई देशों के साथ व्यापारिक साझेदारी को बढ़ाकर इस चुनौती को अवसर में बदला जा सकता है।