
पर्यूषण जीवों की रक्षा और स्वयं की सुरक्षा का पर्व है–उपप्रवर्तिनी डॉ. श्री राजमती जी म. सा.
मणिपुंज सेवा संस्थान में महाश्रमणी गुरुमाता महासती श्री पुष्पवती जी म.सा. आदि ठाणा 7 के शुभ सान्निध्य में पर्वाधिराज पर्व पर्यूषण का प्रथम दिवस अहिंसा दिवस के रूप में मनाया गया।
प्रातः प्रार्थना के बाद नवकार महामंत्र का अखंड जाप प्रारंभ हुआ जिसमें श्रावक श्राविकाएं भक्ति भाव से लाभ ले रहे हैं।
सामायिक साधकों को संबोधित करते हुए सदगुरुवर्या डॉ. श्री राजमती जी म. सा. ने फरमाया जीवों की रक्षा करने वाला ही अपनी आत्मा की सुरक्षा कर सकता है। छह काय की दया पालने वाले धर्मरुचि अनगार, अरिष्टनेमी भगवान,मेघरथ राजा आदि ने जीवों को अभयदान देकर जैन इतिहास में अपना नाम अमर कर लिया। करुणा और दया का झरना प्रवाहित कर इन महान आत्माओं ने जीवों की रक्षा की एवं अपनी आत्मा को हिंसक कार्यों से दूर हटा कर निर्मल बनाया।
साध्वी डॉ. श्री राजरश्मि जी म. सा. ने फरमाया पर्यूषण पर्व का प्रयोजन आत्मा को निर्मल और स्वाधीन बनाना है।मन और बुद्धि को अहंकार,काम,क्रोध, मोहादि की मलिनता से हटाकर आत्म शुद्धि और आत्म मुक्ति की ओर लगाना है। वीतराग भाव की साधना से वैर भाव सदा के लिए भुला देने को विशुद्ध आध्यात्मिक पर्व मनाने के लिए तत्पर रहें।
साध्वी डॉ. श्री राजऋद्धि जी म. सा. ने अन्तःकृतदशांग सूत्र के माध्यम से मोक्ष गामी आत्माओं के पराक्रम को बताते हुए फरमाया कर्मों को तोड़ो, समभाव रखो,संयम में पुरुषार्थ करें।
दोपहर 2 बजे से 3 बजे तक श्री शांति जिनेश्वर शांति करो,सुख संपति आनंद करो का सामूहिक जाप हुआ।इसके बाद कल्पसूत्र का वाचन भी हुआ।
कई श्रावक श्राविकाओं ने उपवास, एकासन,आयंबिल तप किया। बड़ी तपस्या भी श्राविकाओं में जारी है।