
उत्तराखंड में मदरसा बोर्ड समाप्त, नया विधेयक सभी अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थानों को देगा समान अधिकार
उत्तराखंड सरकार ने शिक्षा के क्षेत्र में बड़ा और ऐतिहासिक बदलाव करते हुए मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम को समाप्त करने का फैसला लिया है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट बैठक में यह निर्णय लिया गया कि अब राज्य में "उत्तराखंड अल्पसंख्यक शैक्षिक संस्थान विधेयक, 2025" को लागू किया जाएगा। यह विधेयक 19 से 22 अगस्त तक गैरसैंण में प्रस्तावित विधानसभा के मानसून सत्र में पेश किया जाएगा।
मुख्य परिवर्तन और उद्देश्य
नए विधेयक के अंतर्गत अब अल्पसंख्यक शैक्षिक संस्थान का दर्जा केवल मुस्लिम समुदाय तक सीमित नहीं रहेगा। इसके अंतर्गत सिख, जैन, ईसाई, बौद्ध और पारसी समुदायों द्वारा संचालित शिक्षण संस्थानों को भी यह दर्जा मिल सकेगा। प्रस्तावित कानून का उद्देश्य शिक्षा में गुणवत्ता, पारदर्शिता और समानता सुनिश्चित करना है।
मदरसा बोर्ड अधिनियम समाप्त
"उत्तराखंड मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम, 2016" और "उत्तराखंड गैर-सरकारी अरबी और फारसी मदरसा मान्यता नियम, 2019" को 1 जुलाई, 2026 से समाप्त कर दिया जाएगा। इसके बाद राज्य में सभी अल्पसंख्यक संस्थानों को एकसमान प्रक्रिया के तहत पंजीकरण और मान्यता प्राप्त करनी होगी।
नया प्राधिकरण होगा स्थापित
विधेयक के अनुसार, "उत्तराखंड राज्य अल्पसंख्यक शिक्षा प्राधिकरण" नामक एक स्वायत्त निकाय गठित किया जाएगा, जो संस्थानों को मान्यता देगा और यह सुनिश्चित करेगा कि वे उत्तराखंड विद्यालयी शिक्षा बोर्ड द्वारा निर्धारित शैक्षिक मानकों का पालन करें।
मान्यता प्राप्त संस्थानों को सोसाइटी एक्ट, ट्रस्ट एक्ट या कंपनी एक्ट के अंतर्गत पंजीकृत होना आवश्यक होगा, और उनके पास स्वयं की भूमि, बैंक खाता तथा अन्य संपत्तियां होनी चाहिए।
गुरुमुखी और पाली जैसी भाषाओं को मिलेगा प्रोत्साहन
प्रस्तावित विधेयक के तहत गुरुमुखी और पाली जैसी भाषाओं को भी शैक्षणिक पाठ्यक्रम में शामिल करने का अवसर मिलेगा, जिससे इन भाषाओं के संरक्षण और संवर्धन को बल मिलेगा।
विपक्ष का विरोध संभावित, सरकार तैयार
सरकार के इस निर्णय को विपक्ष की तीव्र प्रतिक्रिया का सामना करना पड़ सकता है, लेकिन राज्य सरकार ने सत्र के लिए पूरी तैयारी का दावा किया है।
विशेषज्ञों की प्रतिक्रिया
मुख्यमंत्री की रणनीतिक सलाहकार समिति के सदस्य और समाजसेवी मनु गौर ने इस फैसले को ऐतिहासिक बताते हुए कहा कि यह उत्तराखंड ही नहीं, बल्कि देश में शिक्षा के क्षेत्र में एक नई दिशा देने वाला कदम है। उनके अनुसार इससे सभी अल्पसंख्यक समुदायों के बच्चों को समान अवसर मिलेंगे और शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार होगा।