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एक फिल्म... और अमर हो गया नाम: चंद्र बरोट की अधूरी मगर यादगार कहानी

 

एक ऐसा नाम, जिसने सिर्फ एक फिल्म बनाई... लेकिन वह फिल्म इतनी बड़ी थी कि आज भी उसके डायलॉग, उसके किरदार, और उसका म्यूजिक लोगों की जुबां पर है। हम बात कर रहे हैं चंद्र बरोट की — 'डॉन' को पर्दे पर लाने वाले निर्देशक, जिनका हाल ही में 86 साल की उम्र में निधन हो गया।

तंजानिया से मुंबई तक का सफर

चंद्र बरोट तंजानिया में जन्मे, वहीं पले-बढ़े। करियर की शुरुआत बैंक में एक सामान्य कर्मचारी के रूप में हुई, लेकिन दिल में था सिनेमा का सपना। और फिर वह सपना उन्हें भारत खींच लाया। अभिनेता और निर्देशक मनोज कुमार के साथ उन्होंने बतौर सहायक निर्देशक कई फिल्मों में काम किया।

फिर आया साल 1978 — जब 'डॉन' बना

डॉन उनकी पहली फिल्म थी, और यही उनकी सबसे बड़ी फिल्म बन गई। अमिताभ बच्चन का डबल रोल, जीनत अमान की दिलकश मौजूदगी, और सलीम-जावेद की कमाल की स्क्रिप्ट — इन सबको चंद्र बरोट ने पर्दे पर इस अंदाज़ में उतारा कि यह फिल्म कल्ट क्लासिक बन गई।

सिर्फ 7 मिलियन के बजट में बनी इस फिल्म ने 70 मिलियन से ज्यादा की कमाई की। बाद में इसी फिल्म के रीमेक और सिक्वल भी बने — शाहरुख खान के साथ 'डॉन' (2006) और 'डॉन 2' (2011)।

लेकिन... आगे की राह आसान नहीं थी

'डॉन' के बाद बरोट के करियर को वह सफलता नहीं मिली जिसकी उम्मीद थी। उन्होंने 'आश्रिता' और 'प्यार भरा दिल' जैसी कुछ फिल्में बनाई, जो फ्लॉप रहीं। उन्होंने दिलीप कुमार के साथ 'मास्टर' और सारिका के साथ 'तितली' जैसी फिल्में शुरू कीं, जो अधूरी रह गईं।

कई स्क्रिप्ट्स थीं, कई सपने थे — 'नील को पकड़ना... इम्पॉसिबल', 'बॉस', 'हांगकांग वाली स्क्रिप्ट' — लेकिन कोई भी परदे तक नहीं पहुंच सका।

बस एक फिल्म, पर वो काफी थी

चंद्र बरोट का फिल्मी सफर लंबा नहीं रहा, लेकिन 'डॉन' ने उन्हें सिनेमा के इतिहास में अमर कर दिया। उन्होंने साबित किया कि कभी-कभी एक ही फिल्म काफी होती है — जब वह फिल्म इतिहास बन जाए।