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साधक को तप की अग्नि का आत्मयज्ञ भी आवश्यक है - उपप्रवर्तिनी डॉ. श्री राजमती जी म.सा.

 

 महाश्रमणी गुरूमाता महासती श्री पुष्पवती जी (माताजी) म.सा. आदि ठाणा-7 के पावन सान्निध्य में मणिपुंज सेवा संस्थान में चातुर्मासिक प्रवचन श्रृंखला सतस प्रवाहमान है। दिवस की मंगल घडिय़ों की शुरूआत प्रार्थना एवं मंगलिक से होती है।

आज प्रवचन के दौरान उपप्रवर्तिनी सदगुरूवर्या डॉ.श्री राजमती जी म.सा. ने फरमाया - पूर्व कृत कर्म उदय में आकर रहते है। उन्हें टाला नहीं जा सकता। यदि कर्म के उदय होने पर फिर से वैर-नफरत-गुस्सा-क्रोध-निन्दा-चुगली अथवा दूसरों पर दोषारोपण करते रहे, तब पूनी की तरह फिर जुड़ जाते हैं। उन कर्मों की श्रृंखला फिर खत्म नहीं होती। जो भी दु:ख व कष्ट अथवा विपरीत स्थिति अपने जीवन में घटित हो रही है, यह अपने ही अज्ञान के कारण किये गये कर्मों का प्रतिफल है। उन्हें समता पूर्वक सहन किये बिना छुटकारा संभव नहीं है। इनसे छुटकारा तभी मिलेगा, जब आप कर्म के उदय होने पर खुद के मन को निर्मल रखेंगे, किसी से कोई शिकायत का भाव नहीं रखेंगे बल्कि खुद के भीतर ऐसा प्रायश्चित व ग्लानि अनुभव करेंगे कि मुझसे अज्ञान के कारण कोई भूल अथवा पाप हो गये लेकिन मैं अब ऐसा कभी नहीं करूँगा। ऐसी आत्म-आलोचना के साथ शांति से कर्मों को सहन करने वाला एक दिन उनसे मुक्त हो जाता है। ऐसे साधक को तप की अग्नि का आत्म यज्ञ भी आवश्यक है।

साध्वी डॉ. राजरश्मि जी म.सा. ने इससे पूर्व धर्मानुरागियों को सम्बोधित करते हुए फरमाया - जो मन, वचन, काया तीनों से पतित हो वह दुराचारी है। केवल काया से विकार जन्य कार्यों में प्रवृत्त ही दुराचारी नहीं अपितु मन के द्वारा किसी के प्रति गंदी व घटिया सोच अथवा वासना मुक्त विचार धारा रखी, वह भी दुराचार है। दुराचारी परिवार, समाज में घृणा का पात्र बनता है और भव-भव में कर्मों की ठोकरे खाने को मजबूर हो जाता है। दुराचार मुक्त जीवन जीना धर्मात्मा बनने की राह है।

साध्वी डॉ. राजऋद्धि जी म.सा. ने कहा– ईशान कोण पूर्व और उत्तर दो शुभ दिशाओं का संगम स्थल है। पूर्व और उत्तर दिशा सकारात्मक ऊर्जा वाली दिशाएँ है जो हितकर, शुभंकर, आरोग्यवर्धक और समृद्धिकारक ऊर्जा से भरपूर है। ईशान कोण में बैठकर साधना करने से शुभताओं का सर्जन और उच्चताओं का अर्जन होता है।

श्रीमान विमलेश छाजेड़ एवं श्रीमती सुशीला लोढ़ा के आज 9-9 उपवास के प्रत्याख्यान हुए। इसके अलावा एकासन, आयंबिल के तप भी श्रावक-श्राविकाओं द्वारा किये जा रहे हैं।
संघ महामंत्री श्रीमान् कैलाश गैलड़ा ने तपस्यार्थियों की अनुमोदना की। आगामी 25 जुलाई को आचार्य आनन्द ऋषि जी की जन्म जयन्ती पर आयंबिल तप की प्रेरणा की जा रही है।