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भारत अमेरिका के साथ जल्द ही एक व्यापारिक समझौते को अंतिम रूप दे सकता है, लेकिन ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (GTRI) ने इस प्रक्रिया में अत्यंत सतर्कता बरतने की सलाह दी है। अमेरिका ने विभिन्न देशों के साथ द्विपक्षीय व्यापार समझौतों को अंतिम रूप देने की समयसीमा 9 जुलाई से बढ़ाकर 1 अगस्त कर दी है, जिससे भारत समेत अन्य देशों को अब तीन सप्ताह और मिल गए हैं।
GTRI के सह-संस्थापक अजय श्रीवास्तव ने कहा, "यह समझौता पारंपरिक मुक्त व्यापार समझौता नहीं है, बल्कि यह YATRA (U.S. Tariff Retaliatory Agreement) मॉडल पर आधारित है, जो अमेरिकी टैरिफ दबाव का परिणाम है।"
यह विस्तार अप्रैल में शुरू किए गए अमेरिकी व्यापार अभियान का हिस्सा है, जिसमें करीब 60 देशों को टैरिफ चेतावनी दी गई थी। अभी तक केवल ब्रिटेन, वियतनाम और आंशिक रूप से चीन ने ही अमेरिका के साथ समझौते को अंतिम रूप दिया है।
7 जुलाई को राष्ट्रपति ट्रम्प ने 14 देशों को औपचारिक पत्र जारी कर यह स्पष्ट कर दिया कि यदि वे अमेरिका की शर्तों पर समझौते को स्वीकार नहीं करते, तो उन्हें 1 अगस्त से दंडात्मक टैरिफ का सामना करना पड़ेगा। इसमें जापान, दक्षिण कोरिया, मलेशिया और ट्यूनीशिया जैसे देशों पर 25% तक, जबकि कुछ देशों पर 40% तक टैरिफ लगाने की घोषणा की गई है।
GTRI ने चेतावनी दी कि इन टैरिफों से वैश्विक व्यापार पर नकारात्मक असर पड़ेगा – इससे अमेरिकी उपभोक्ताओं को महंगाई का सामना करना पड़ेगा और आपूर्ति श्रृंखलाएं प्रभावित होंगी। उदाहरण के लिए, मई 2025 में अमेरिका का चीन से आयात 35% तक घट गया।
श्रीवास्तव ने कहा, "भारत को अब अमेरिका के साथ समझौते का एक संभावित उम्मीदवार माना जा रहा है, लेकिन नई दिल्ली को जल्दबाज़ी करने के बजाय रणनीतिक रूप से सोचने की ज़रूरत है।"
GTRI ने यह भी कहा कि अमेरिका द्वारा BRICS जैसे मंचों पर एकतरफा शर्तें थोपने की प्रवृत्ति को देखते हुए भारत को इस समझौते की रणनीतिक उपयोगिता और संभावित असंतुलन के बीच संतुलन बनाकर चलना चाहिए।