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पर्यावरणीय चेतना को जागृत करने और निःस्वार्थ सेवा की भावना को आत्मसात करने की दिशा में राजकीय महिला इंजीनियरिंग कॉलेज, अजमेर की राष्ट्रीय सेवा योजना (एनएसएस) इकाई द्वारा आज पक्षियों के लिए परिंडे लगाए गए। यह पहल गर्मी के मौसम में पक्षियों को संरक्षण एवं सहायता प्रदान करने की दिशा में एक प्रेरणादायक कदम है, जिसका मुख्य उद्देश्य पक्षियों को भोजन और जल की सुविधा उपलब्ध कराना तथा स्वयंसेविकाओं में पर्यावरण के प्रति संवेदनशीलता और उत्तरदायित्व की भावना को जागृत करना था।
इस पहल के अंतर्गत कॉलेज परिसर के भीतर लगे पेड़ों, छायादार स्थानों और ऊँचाई पर सुरक्षित स्थानों पर मिट्टी से बने सुंदर पात्र (परिंडे) लगाए गए। प्रत्येक परिंडे में पक्षियों के लिए ताज़ा जल और दाना डाला गया। इसके साथ ही यह व्यवस्था सुनिश्चित की गई कि एनएसएस की स्वयंसेविकाएं प्रतिदिन इन परिंडों की नियमित सफाई और पुनः जल-दाना भरने की जिम्मेदारी निभाएँगी।
कॉलेज की प्राचार्या प्रो. (डॉ.) प्रकृति त्रिवेदी ने इस पहल की सराहना करते हुए कहा – "आज के समय में जब जीव-जंतुओं के जीवन पर संकट गहराता जा रहा है, तब ऐसे प्रयास न केवल उनके संरक्षण की दिशा में अहम भूमिका निभाते हैं, बल्कि स्वयंसेविकाओं में मानवीय संवेदनाओं का भी विकास करते हैं।"
एनएसएस कार्यक्रम अधिकारी श्री अमरजीत पूनिया ने इस अवसर पर कहा – "पक्षियों के लिए जल और आहार की व्यवस्था करना एक छोटी-सी कोशिश अवश्य है, परंतु इसका प्रभाव अत्यंत गहरा होता है। यह कार्यक्रम न केवल जीवों की सेवा का माध्यम है, बल्कि स्वयंसेविकाओं के भीतर सामाजिक और पर्यावरणीय जिम्मेदारियों के प्रति चेतना भी जागृत करता है। हमारी स्वयंसेविकाएं न केवल ये परिंडे लगा रही हैं, बल्कि प्रतिदिन इनमें ताज़ा दाना-पानी भी डालेंगी।"
इस अवसर पर एनएसएस समिति सदस्य – डॉ. नीतू राठौड़, डॉ. सीमा माहेश्वरी, डॉ. सौरभ माहेश्वरी, श्री अरविंद शर्मा एवं श्रीमती सुनीता यादव विशेष रूप से उपस्थित रहे। सभी ने इस पहल की सराहना की और स्वयंसेविकाओं के प्रयासों की प्रशंसा की। यह उल्लेखनीय है कि हमारी स्वयंसेविकाएं यह दायित्व निष्ठा और प्रेम से निभा रही हैं, जो एक आदर्श उदाहरण है।
कार्यक्रम के दौरान स्वयंसेविकाओं ने मिट्टी के परिंडों में दाना और पानी भरकर उन्हें पेड़ों पर लटकाया। यह दृश्य न केवल एक संवेदनशील प्रयास का परिचायक था, बल्कि पर्यावरणीय चेतना के विकास का भी प्रत्यक्ष प्रमाण था।
यह आयोजन एक प्रेरक पहल बनकर उभरा, जो आने वाले समय में पर्यावरण के प्रति स्वयंसेविकाओं की सक्रिय भागीदारी और संवेदनशील दृष्टिकोण को और अधिक सशक्त करेगा।
कार्यक्रम के अंत में यह संकल्प लिया गया कि परिंडों में प्रतिदिन नियमित रूप से ताज़ा दाना-पानी भरा जाएगा, ताकि यह प्रयास सतत रूप से जीवित रहे और अधिक से अधिक पक्षियों को लाभ पहुंचाया जा सके।