11 साल की पूजा बनी ‘मुनकी’ की मां — चार महीने तक पाला हिरण का बच्चा, विदाई में छलके आंसू
राजस्थान के जैसलमेर जिले के लाठी क्षेत्र के सनावड़ा गांव की 11 वर्षीय पूजा सिंह ने जो किया, उसने पूरे इलाके को भावुक कर दिया। पूजा ने एक बेसहारा हिरण के बच्चे को न केवल जीवन दिया, बल्कि चार महीने तक उसकी देखभाल उस ममता से की जैसे कोई मां अपने बच्चे की करती है। इस नन्हे हिरण का नाम उसने प्यार से रखा — ‘मुनकी’।
दर्द से शुरू हुई दया और ममता की कहानी
जून महीने की एक दोपहर गांव के पास के खेतों में कुछ आवारा कुत्तों ने एक मादा हिरण पर हमला कर दिया। ग्रामीणों के पहुंचने तक मादा हिरण की मौत हो चुकी थी, लेकिन पास ही झाड़ियों में एक छोटा-सा बच्चा भयभीत हालत में छिपा मिला। उस समय पूजा अपने पिता भगवान सिंह के साथ वहीं थी।
बच्ची ने अपने पिता से कहा — “पापा, इसे घर ले चलते हैं, नहीं तो यह भी मर जाएगी।”
बेटी की मासूम संवेदना देखकर पिता का दिल पिघल गया और दोनों उस हिरण के बच्चे को घर ले आए। वहीं से शुरू हुई इंसान और वन्यजीव के बीच प्रेम और अपनापन की एक अद्भुत कहानी।
घर का हिस्सा बना ‘मुनकी’
घर आने के बाद पूजा ने मुनकी को गाय और बकरी का दूध पिलाना शुरू किया। हर सुबह सबसे पहले वह मुनकी की देखभाल करती — उसे नहलाती, खिलाती और गोद में सुलाती।
धीरे-धीरे दोनों के बीच ऐसा गहरा रिश्ता बन गया कि अगर पूजा कुछ देर के लिए दूर चली जाती, तो मुनकी बेचैन हो जाता और खाना नहीं खाता।
परिवार के लोगों का कहना है कि मुनकी ने पूजा को अपनी मां मान लिया था। आमतौर पर हिरण इंसानों से दूरी बनाए रखते हैं, लेकिन मुनकी ने पूजा की ममता को पूरे दिल से स्वीकार किया।
जंगल लौटते वक्त छलक पड़े आंसू
चार महीने तक पूजा ने मुनकी को पाला। जब वह अब अपने पैरों पर खड़ा होने लायक हो गया, तो वन विभाग ने उसे जंगल में छोड़ने का निर्णय लिया।
वनपाल कमलेश कुमार और वन्यजीव प्रेमी धर्मेंद्र पूनिया टीम के साथ गांव पहुंचे और पूजा को समझाया कि अब मुनकी को अपने असली घर – जंगल – में रहना चाहिए।
विदाई के समय पूजा ने उसे गले लगाकर अलविदा कहा और उसकी आंखों से आंसू बह निकले। गांव के लोग भी इस भावनात्मक पल को देखकर भावुक हो उठे।
पूजा ने कहा – “अब मुनकी बड़ी हो गई है और अपने घर लौट गई है, लेकिन वो हमेशा मेरे दिल में रहेगी।”
बड़ी होकर बनना चाहती है वन अधिकारी
वनपाल कमलेश कुमार ने कहा कि पूजा और मुनकी की कहानी वन्यजीव संरक्षण की सच्ची मिसाल है। धर्मेंद्र पूनिया ने पूजा को सम्मानित करते हुए 500 रुपये का प्रोत्साहन पुरस्कार भी दिया।
अब पूजा का सपना है कि वह बड़ी होकर वन अधिकारी बने।
वह मुस्कुराते हुए कहती है – “मुनकी अब जंगल में खुश है। मैं बड़ी होकर उन सबकी रक्षा करूंगी जो बोल नहीं सकते।”
यह कहानी बताती है कि इंसानियत और ममता की कोई सीमा नहीं होती — चाहे वह इंसान के लिए हो या किसी बेबस जीव के लिए।