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                        विजयादशमी 2025: श्रवण नक्षत्र और रवि योग में होगा दशहरे का पर्व, जानें महत्व, मुहूर्त और परंपराएं
दशहरा, जिसे विजयादशमी भी कहा जाता है, बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक पर्व है। यह पर्व दो ऐतिहासिक घटनाओं से जुड़ा है — मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम द्वारा रावण का वध, और मां दुर्गा द्वारा महिषासुर का संहार। यह दिन शक्ति, धर्म, सत्य और मर्यादा की जीत का उत्सव है।
✨ विजयादशमी 2025: तिथि और शुभ मुहूर्त
दशमी तिथि प्रारंभ: 1 अक्टूबर, बुधवार, सायं 7:02 बजे
दशमी तिथि समाप्ति: 2 अक्टूबर, गुरुवार, सायं 7:10 बजे
विजयादशमी का पर्व: 2 अक्टूबर, गुरुवार को मनाया जाएगा
🔸 विजय मुहूर्त: दोपहर 1:56 से 2:44 बजे तक
🔸 अपराह्न पूजा मुहूर्त: दोपहर 1:09 से 3:31 बजे तक
🔸 रवि योग: 2 अक्टूबर को पूरे दिन
🔸 श्रवण नक्षत्र: 2 अक्टूबर सुबह 9:14 बजे से 3 अक्टूबर सुबह 9:34 बजे तक
👉 दशमी तिथि, श्रवण नक्षत्र और रवि योग का एक साथ संयोग दशहरा को अत्यंत शुभ और फलदायक बनाता है। यह संयोजन शास्त्रों के अनुसार अत्यंत कल्याणकारी माना गया है।
🕉️ विजयादशमी का धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व
भगवान श्रीराम – आदर्श, मर्यादा और धर्म के प्रतीक
मां दुर्गा – शक्ति और साहस की प्रतीक
हनुमान जी व श्री गणेश की पूजा – सफलता और शुभता का आह्वान
🙏 इस दिन रामायण पाठ, सुंदरकांड, श्रीराम रक्षा स्तोत्र का पाठ करने से मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
🗡️ शस्त्र पूजन का विशेष महत्व होता है। इसे पराक्रम, रक्षा और आत्मबल का प्रतीक माना गया है।
🌿 विजयादशमी की प्रमुख परंपराएं
🔸 1. पान का बीड़ा – विजय का प्रतीक
रावण दहन के बाद पान खाना या खिलाना सम्मान, प्रेम और विजय का संकेत है। हनुमानजी को बूंदी और पान अर्पित करने की परंपरा शुभ मानी जाती है।
🔸 2. नीलकंठ पक्षी के दर्शन
नीलकंठ पक्षी को भगवान शिव का प्रतिनिधि माना जाता है। दशहरे के दिन इसके दर्शन करना भाग्योदय और समृद्धि का सूचक है।
🔸 3. शमी वृक्ष का पूजन
शमी वृक्ष के दर्शन और पूजन से:
शत्रु बाधा से मुक्ति
शनि दोष और तंत्र-मंत्र से रक्षा
धन-समृद्धि की प्राप्ति होती है
🪔 दशहरे पर शुभ कार्यों की शुरुआत क्यों करें?
विजयादशमी को अबूझ मुहूर्त माना गया है। इस दिन किसी भी नए कार्य की शुरुआत जैसे:
शिक्षा (अक्षरारंभ)
व्यवसाय
कृषि (फसल बोना)
गृह प्रवेश
आदि करना अत्यंत शुभ फलदायक माना जाता है।
✍️ आध्यात्मिक संदेश
श्रीराम और रावण दोनों ही शिव भक्त थे, परंतु उनके जीवन का उद्देश्य भिन्न था।
रावण की साधना – अहंकार, स्वार्थ और सत्ता प्राप्ति के लिए
श्रीराम की साधना – परोपकार, धर्म और लोकमंगल के लिए
इसीलिए आज भी "श्रीराम की जय" कहकर हम रावण के पुतले का अंत करते हैं।
✅ निष्कर्ष
विजयादशमी का पर्व सिर्फ एक उत्सव नहीं, बल्कि एक जीवन-दर्शन है —
जहां हम शक्ति, धर्म, सत्य और मर्यादा के मार्ग पर चलकर अपने जीवन को सफल और सार्थक बना सकते हैं।