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ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म्स पर सरकार की कड़ी नजर: सुनिश्चित किया जा रहा जीएसटी दर कटौती का लाभ उपभोक्ताओं को मिले

 

सरकार अब ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म्स पर सख्त निगरानी रख रही है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि वस्तु एवं सेवा कर (GST) दरों में हाल ही में की गई कटौती का लाभ उपभोक्ताओं को पूरी तरह से मिल रहा है। शैम्पू से लेकर दालों तक, दैनिक उपयोग की वस्तुओं की कीमतों पर सरकार की पैनी नजर है।

सरकारी सूत्रों के अनुसार, अधिकारी इस बात की बारीकी से जांच कर रहे हैं कि क्या ई-कॉमर्स कंपनियां मूल्य निर्धारण के मानकों का पालन कर रही हैं या नहीं। साथ ही यह भी देखा जा रहा है कि कहीं ये प्लेटफॉर्म जीएसटी कटौती से उपभोक्ताओं को मिलने वाले लाभ को दबा तो नहीं रहे हैं।

ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म्स को दी गई चेतावनी

कुछ शिकायतों के बाद कि ई-कॉमर्स साइट्स पर बेची जा रही आवश्यक वस्तुओं की कीमतों में कटौती अपेक्षा के अनुरूप नहीं की गई है, सरकार ने अनौपचारिक रूप से कुछ प्लेटफॉर्म्स को फटकार भी लगाई है।

सूत्रों ने बताया, “राजस्व विभाग यह सुनिश्चित कर रहा है कि जीएसटी दरों में की गई कटौती का लाभ उसी अनुपात में कीमतों में दिखे। मूल्य निर्धारण में विसंगतियों की ओर जब ध्यान दिलाया गया, तो कुछ ई-कॉमर्स कंपनियों ने इसे 'तकनीकी खामियों' का परिणाम बताया।”

नई जीएसटी संरचना: दो दरें, कम कीमतें

22 सितंबर 2025 से प्रभावी नई जीएसटी दरों के तहत अब 5%, 12%, 18% और 28% की जगह केवल दो दरें – 5% और 18% लागू हैं। इससे करीब 99% दैनिक उपयोग की वस्तुओं की कीमतों में कमी आई है।

54 जरूरी वस्तुओं की कीमतों पर विशेष निगरानी

वित्त मंत्रालय ने 9 सितंबर को केंद्रीय जीएसटी अधिकारियों को निर्देश दिया था कि वे 54 सामान्य उपभोग की वस्तुओं पर मासिक मूल्य परिवर्तन की रिपोर्ट दें। इस रिपोर्ट में ब्रांड-वार अधिकतम खुदरा मूल्य (MRP) का तुलनात्मक विवरण शामिल होगा। यह रिपोर्ट केंद्रीय अप्रत्यक्ष कर एवं सीमा शुल्क बोर्ड (CBIC) को सौंपी जाएगी।

इन 54 वस्तुओं में मक्खन, शैम्पू, टूथपेस्ट, टोमैटो केचप, जैम, आइसक्रीम, एयर कंडीशनर, टीवी, सभी प्रकार की डायग्नोस्टिक किट, ग्लूकोमीटर, पट्टियां, थर्मामीटर, रबड़, क्रेयॉन और सीमेंट जैसे उत्पाद शामिल हैं।

निष्कर्ष

सरकार की यह पहल उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा की दिशा में एक बड़ा कदम है। जीएसटी कटौती के वास्तविक लाभ को आम जनता तक पहुंचाना अब सिर्फ एक नीति नहीं, बल्कि एक निगरानी अभियान बन चुका है।