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                        विजयादशमी पर शमी पूजन का महत्व: धार्मिक और ज्योतिषीय दृष्टिकोण से
विजयादशमी, जिसे दशहरा भी कहा जाता है, न केवल बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है, बल्कि यह पर्व धार्मिक आस्था और आध्यात्मिक ऊर्जा से भी जुड़ा हुआ है। इस दिन शस्त्र पूजन के साथ-साथ शमी वृक्ष का पूजन करने की परंपरा भी प्राचीन काल से चली आ रही है।
शमी पूजन का धार्मिक महत्व
हिंदू धर्म में वृक्षों की पूजा विशेष स्थान रखती है। शमी वृक्ष को विशेष रूप से शुभ और पवित्र माना गया है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान श्रीराम ने लंका पर चढ़ाई से पूर्व शमी वृक्ष की पूजा की थी और विजय की कामना की थी। इसके साथ ही महाभारत में भी अर्जुन ने अपना धनुष शमी वृक्ष में छुपाया था और विजयादशमी के दिन पुनः प्राप्त कर युद्ध में सफलता पाई थी।
इसलिए शमी वृक्ष को विजय, समृद्धि और शुभता का प्रतीक माना जाता है। विजयादशमी के दिन शमी के पत्तों का आदान-प्रदान भी सम्मान और सौभाग्य की भावना से किया जाता है।
ज्योतिषीय महत्व
शमी वृक्ष का संबंध शनि ग्रह से जोड़ा जाता है। शनि को कर्मफलदाता माना गया है, और जब इनका प्रभाव प्रतिकूल होता है तो जीवन में कठिनाइयाँ, बाधाएँ और मानसिक तनाव उत्पन्न होते हैं। माना जाता है कि शमी वृक्ष की पूजा करने से शनि के दुष्प्रभावों से राहत मिलती है, और जीवन में स्थिरता व संतुलन आता है।
घर के मुख्य द्वार पर शमी का पौधा लगाने से नकारात्मक ऊर्जा का नाश होता है और परिवार में शांति, समृद्धि और सकारात्मकता बनी रहती है।
शमी पूजन क्यों करें?
शमी का वृक्ष धन, वैभव और विजय का प्रतीक है।
यह नकारात्मक ऊर्जा से रक्षा करता है।
शमी पूजन से शनि दोषों में कमी आती है।
यह पूजन प्राकृतिक ऊर्जा और आध्यात्मिक शांति का अनुभव कराता है।
निष्कर्ष:
विजयादशमी पर शमी वृक्ष की पूजा एक आध्यात्मिक, धार्मिक और ज्योतिषीय उपाय है, जो न केवल परंपराओं से जुड़ा है, बल्कि जीवन में सकारात्मक ऊर्जा, शांति और सफलता लाने का साधन भी है। यह हमें प्रकृति से जोड़ता है और कर्म के महत्व को समझने की प्रेरणा देता है।