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केंद्र सरकार ने लंबे समय से तैयार की जा रही राष्ट्रीय मुकदमेबाजी नीति को लागू न करने का फैसला किया है। इसके बजाय, सरकार ने सभी मंत्रालयों, विभागों और सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों को अदालतों में लंबित मामलों की संख्या घटाने के लिए सख्त निर्देश जारी किए हैं।
सरकार का उद्देश्य है कि गैरजरूरी अपीलों पर रोक लगाई जाए और ऐसे आदेशों या नोटिफिकेशनों में सुधार किया जाए, जिनकी वजह से बार-बार मुकदमे दर्ज होते हैं।
लगभग 7 लाख मामले, सबसे अधिक वित्त मंत्रालय से जुड़े
वर्तमान में केंद्र सरकार करीब 7 लाख मामलों में पक्षकार है, जिनमें से सबसे ज्यादा – लगभग 1.9 लाख मुकदमे – वित्त मंत्रालय से संबंधित हैं। इस बढ़ती संख्या को नियंत्रित करने के लिए सरकार ने कानूनी प्रक्रियाओं की समीक्षा और उनमें सुधार की दिशा में कदम उठाए हैं।
“नीति” नहीं, व्यावहारिक निर्देश होंगे प्रभावी
कानून मंत्रालय ने स्पष्ट किया है कि सरकार अब 'राष्ट्रीय मुकदमेबाजी नीति' के नाम से कोई औपचारिक नीति नहीं बनाएगी, क्योंकि यह सिर्फ सरकारी संस्थाओं पर लागू होती, न कि आम जनता पर। मंत्रालय का मानना है कि निर्देशों और सुधारों के माध्यम से ही व्यावहारिक समाधान संभव है।
सरकार ने कहा है कि इन निर्देशों की हर साल समीक्षा की जाएगी, ताकि अदालतों में लंबित मामलों की संख्या घटाने की प्रगति सुनिश्चित हो सके।
2010 में भी नहीं मिल पाई थी नीति को मंजूरी
यह उल्लेखनीय है कि वर्ष 2010 में भी एक राष्ट्रीय मुकदमेबाजी नीति का मसौदा तैयार किया गया था, लेकिन उसे मंजूरी नहीं मिल पाई थी। अब सरकार का रुख स्पष्ट है — वह नीतियों से ज्यादा प्रभावी क्रियान्वयन और निर्णयों की गुणवत्ता पर ध्यान देना चाहती है।
सरकार का मानना है कि कानूनी प्रक्रियाओं को सरल बनाकर और बेहतर प्रशासनिक निर्णय लागू करके ही मुकदमेबाजी को कम किया जा सकता है, जिससे न केवल सरकारी संसाधनों की बचत होगी, बल्कि आम जनता को भी राहत मिलेगी।