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                        सुप्रीम कोर्ट का बड़ा निर्देश: भिखारियों के लिए आश्रयगृह राज्य की संवैधानिक जिम्मेदारी
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि भिखारियों के लिए बनाए गए राज्य संचालित आश्रयगृह (बेगर्स होम) किसी की इच्छा या दान पर आधारित नहीं, बल्कि राज्य की संवैधानिक जिम्मेदारी हैं। अदालत ने कहा कि इन आश्रयगृहों में गरिमापूर्ण जीवन सुनिश्चित करना प्रशासन की मूल जिम्मेदारी है।
जस्टिस जे.बी. पारदीवाला और जस्टिस आर. महादेवन की पीठ ने सभी राज्य सरकारों और केंद्र शासित प्रदेशों को निर्देश दिया कि वे भिक्षावृत्ति करने वालों के लिए बने आश्रयगृहों और संबंधित संस्थानों में आवश्यक सुधार लागू करें। अदालत ने कहा कि समाज के सबसे कमजोर वर्ग को गरिमा के साथ जीवन जीने का संवैधानिक अधिकार सही मायनों में सुनिश्चित होना चाहिए।
पीठ ने यह भी कहा कि आश्रयगृहों में मानवीय परिस्थितियां उपलब्ध न कराना केवल प्रशासन की लापरवाही नहीं है, बल्कि यह जीवन और गरिमा के मौलिक अधिकार का उल्लंघन है। अदालत ने साफ किया कि गरीब और बेसहारा लोगों के प्रति राज्य का रुख सकारात्मक और जिम्मेदार होना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया कि हर आश्रयगृह में भर्ती व्यक्ति का 24 घंटे के भीतर किसी योग्य डॉक्टर से मेडिकल परीक्षण अनिवार्य रूप से कराया जाए। इसके अलावा, हर महीने स्वास्थ्य जांच हो और संक्रामक व जलजनित बीमारियों की रोकथाम के लिए विशेष व्यवस्था बनाई जाए।
अदालत ने यह भी कहा कि सभी आश्रयगृहों में स्वच्छता के न्यूनतम मानक तय किए जाएं। इसमें स्वच्छ पेयजल, शौचालय, नालियां, और मच्छर-कीट नियंत्रण जैसी सुविधाएं शामिल हों।
यह आदेश उस समय आया जब दिल्ली के सीलमपुर स्थित एक आश्रयगृह में पानी में कोलीफॉर्म बैक्टीरिया पाए जाने के कारण हैजा और गैस्ट्रोएंटेराइटिस का प्रकोप फैला। अदालत ने निर्देश दिया कि सभी राज्य और केंद्र शासित प्रदेश हर दो साल में इन आश्रयगृहों का स्वतंत्र और निष्पक्ष ऑडिट कराएं।